सोमनाथ मन्दिर गुजरात के सौराष्ट्र प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र के अन्तर्गत प्रभास में विराजमान हैं। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पृथ्वी का सबसे पहला भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग है।शिवपुराण के अनुसार चंद्रमा ने इसी स्थान पर कठोर तप किया था और दिए गए श्राप से मुक्ति पाई थी। पुरानो में लिखा है की इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवान चंद्रदेव ने की थी।
कहा जाता है की इसी क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने यदु वंश का संहार कराने के बाद अपनी नर लीला समाप्त कर ली थी। माना जाता है की ‘जरा’ नामक व्याध (शिकारी) ने अपने बाणों से उनके चरणों (पैर) को भेद डाला था।
श्रीमल्लिकार्जुन भगवान शिव का दूसरा ज्य्तिर्लिंग है जो आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर विराजमान हैं। शिव के इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान माना गया है और इशिल्ये इसे दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं। महाभारत के अनुसार जो प्राणी श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करते है उसे अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र करने से लोगों के सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं और अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है।
महाकाल भगवान शिव का एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। भगवान शिव का ये ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। महाकालेश्वर में होने वाली भस्मारती भारत ही नहीं विश्व भर में प्रसिद्ध है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर के समीप पवित्र नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। पवित्र नर्मदा नदी ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पहाड़ी के चारों ओर बहती है और नदी बहने से यहां ऊं का आकार भी बन जाता है। मान्यता है की नर्मदा नदी के ओउंकार रूप के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पड़ा.
उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भी भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह तीर्थ स्थान भगवान शिव को बेहद प्रिय है और वे हमेसा यहाँ निवास करते है.
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का दूसरा नाम मोटेश्वर महादेव भी है।
उत्तर प्रदेश के वारानशी सहर में काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्तिथ है. यह ज्योतिर्लिंग शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। पुरानो में काशी सबसे ज्यादा चर्चित और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। काशी के बारे में मान्यता है, भगवान महदेव खुद इशकी रख्सा करते है और संसार में प्रलय आने पर भी भगवन शिव का यह स्थान बना रहेगा। काशी की रक्षा के लिए भोलेनाथ भगवान इस स्थान को अपने प्रिय त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय ख़तम हो जाने के बाद काशी को पुनः उसके स्थान पर रख देंगे।
महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। माना जाता है की ब्रह्मागिरि पर्वत पर ही ब्रम्हा जी निवास करते है.
श्री वैद्यनाथ शिवलिंगों का समस्त ज्योतिर्लिंग की गणना में नौवां स्थान बताया गया है। भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर झारखण्ड के संथाल परगना के दुमका नामक सहर में स्थित है। भक्त प्यार से इन्हे झारखंडी बाबा के नाम से पुकारते है माना जाता है की भक्त जब प्यार से इन्हें बुलाते है तो ये तुरंत प्रकट हो जाते है।
रामायण में भी वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का वर्णन पाया जाता है। कहा जाता है की एक बार लंकापति रावन कैलाश से भगवान महदेव को उठा कर लंका अपने महल में ले जा रहे थे और रास्ते में उसे नित्य क्रिया की जरुरत आन पड़ी और उसने महदेव को बैद्यनाथ में रख दिया और नित्य क्रिया के लिए चले गए, लेकिन जब नित्य क्रिया से मुक्त हो गए और पुनः भगवान को उठाने की कोसिस करने लगे। लेकिन सब प्रयास वियार्थ गया और अंत में रावन थक गया और वापस लंका लौट गया।
यही पर रावन ने भगवान महदेव को प्रसन्न करने के लिए शिव ताण्डव श्रोत की रचना भी की परन्तु महदेव फिर भी प्रसन्न नहीं हुए और अपने स्थान से हिले भी नहीं।
कहा जाता है की जिस अस्थान पर रावन में नित्य क्रिया किया था वहा पर एक नदी बन गयी और नदी रावनाजोर के नाम से जाना जाता है
गुजरात के बाहरी क्षेत्र में द्वारिका में भगवान नागेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। द्वारका पुरी से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 17 मील की है। इस भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की महिमा के बारे में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग तमिलनाडू राज्य के रामनाथ पुरं नामक गावं में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की मान्यता है, कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने लंका पर चढाई करने के पहले की थी।
घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के संभाजीनगर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। भगवान भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह सबसे आखिरी ज्योतिर्लिंग है।